रात्रि भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
जैन धर्म में रात्रिभोजन का निषेध एक बहुत ही महत्वपूर्ण आचार है, जो अहिंसा, संयम और स्वास्थ्य के सिद्धांतों पर आधारित है। इसके पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण होते हैं:
🔸 धार्मिक कारण (Religious Reasons):
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अहिंसा का पालन:
रात में छोटे-छोटे कीटाणु, सूक्ष्म जीव, बैक्टीरिया, मच्छर आदि अधिक सक्रिय रहते हैं और रात्रि भोजन के समय ये अन्न में आ सकते हैं। जब हम भोजन करते हैं, तो अनजाने में अनेक जीवों की हिंसा होती है। -
ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त समय:
रात्रि का समय आत्मचिंतन, ध्यान और शांति के लिए माना गया है। पेट भरा होने पर मन और शरीर स्थिर नहीं रहते, जिससे साधना में बाधा आती है।
🔸 वैज्ञानिक कारण (Scientific Reasons):
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पाचन शक्ति कम हो जाती है:
सूर्यास्त के बाद हमारी पाचन शक्ति धीरे-धीरे कम हो जाती है। रात को भोजन करने से भोजन ठीक से पचता नहीं और पेट की बीमारियाँ होती हैं। -
नींद में बाधा:
पेट भरा होने से नींद की गुणवत्ता खराब होती है। इससे थकान, गैस, एसिडिटी और मोटापा जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।
🔸 आध्यात्मिक कारण (Spiritual Reasons):
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विकारी भावों से बचाव:
रात्रि में मन में विकार, तामसिक प्रवृत्तियाँ अधिक होती हैं। इस समय संयम रखना आत्मा की शुद्धि के लिए सहायक होता है। -
सदाचार और तप:
बिना रात्रि भोजन के रहने से व्यक्ति में त्याग, तप और संयम की भावना बढ़ती है। यह आत्मा की उन्नति में सहायक होता है।
🔹 नियम क्या है?
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जैन साधु-साध्वियाँ तो हमेशा अवसरग (सूर्यास्त से पहले) ही भोजन करते हैं।
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श्रावक-श्राविकाओं के लिए भी यह नियम है कि वे सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।
🔸 निष्कर्ष:
रात्रि भोजन त्यागना अहिंसा, स्वास्थ्य, और आत्मिक उन्नति तीनों दृष्टिकोण से लाभकारी है। जैन धर्म हमें सिखाता है कि हम जितना संभव हो, सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की भी रक्षा करें, और आत्मा को शुद्ध करें।