नवकार मंत्र का अर्थ
णमो अरिहंताण
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
एसो पंच णमुक्कारो , सव्वपावप्पणासणो |
मंगलाणं च सव्वेसिं , पढमं हवइ मंगलं |
📖 शब्दार्थ और भावार्थ:
णमो अरिहंताणं –
मैं अरिहंतों को नमस्कार करता हूँ।
(अरिहंत वे होते हैं जिन्होंने अपने सारे शत्रु यानी राग-द्वेष को जीत लिया है।)
णमो सिद्धाणं –
मैं सिद्धों को नमस्कार करता हूँ।
(सिद्ध वे हैं जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, वे जन्म-मरण से मुक्त हैं।)
णमो आयरियाणं –
मैं आचार्यों को नमस्कार करता हूँ।
(जो धर्म का प्रचार करते हैं और साधुओं का संचालन करते हैं।)
णमो उवज्जायाणं –
मैं उपाध्यायों को नमस्कार करता हूँ।
(जो शास्त्रों का ज्ञान देते हैं और साधकों का मार्गदर्शन करते हैं।)
णमो लोए सव्वसाहूणं –
मैं संसार के सभी साधुओं को नमस्कार करता हूँ।
(वे जो संयम और तपस्या के मार्ग पर हैं।)
यह मंत्र आत्मा की उच्चतम अवस्थाओं को प्रणाम करता है — अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि। यह किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं लेता, बल्कि सद्गुणों को नमस्कार करता है।
इस मंत्र का जाप करने से पापों का नाश होता है और मंगल की प्राप्ति होती है।
नवकार मंत्र – एक कविता
नमन करूँ मैं अरिहंत को,
जिन्होंने जीता राग-द्वेष को।
शत्रु सभी हैं जिनसे हारे,
ज्ञान प्रकाश उनके सारे।
सिद्ध भगवंतों को शीश नवाऊँ,
जो मोक्षपद को हैं पहुँचाऊँ।
बंधन से जो मुक्त हो गए,
शुद्ध आत्मा में रम गए।
आचार्य जो पथ दिखलाते,
धर्म-संयम हमें सिखलाते।
शांति, नियम जिनके हैं गहने,
उनको वंदन करते रहने।
उपाध्याय ज्ञान के सागर,
जिनसे जग में फैले उजागर।
शास्त्रों का जो ज्ञान कराते,
सच्चे पथ पर हमें चलाते।
संत सभी जो ध्यान लगाते,
सत्य, अहिंसा सदा निभाते।
सब साधुजन को नमस्कार,
जिनसे होता जीवन उद्धार।
ये पाँचों को नम्र प्रणाम,
करते पापों का संपूर्ण काम।
सर्वमंगल इनसे होता है,
मन को सच्चा मार्ग मिलता है।